ऋग्वेद (मंडल 5)
त्वं नो॑ अग्ने अद्भुत॒ क्रत्वा॒ दक्ष॑स्य मं॒हना॑ । त्वे अ॑सु॒र्य१॒॑मारु॑हत्क्रा॒णा मि॒त्रो न य॒ज्ञियः॑ ॥ (२)
हे आश्चर्य रूप अग्नि! तुम हमारे यज्ञादि कर्मो से प्रसन्न होकर हमारे लिए धन का दान करो. तुम में शत्रुनाश का बल स्थित है. तुम सूर्य के समान हमारे यज्ञ पूर्ण करो. (२)
O wonder form agni! Please be pleased with our yajnadi deeds and donate money to us. The force of the enemy curse is located in you. You complete our yajna like the sun. (2)