ऋग्वेद (मंडल 5)
ऋ॒तेन॑ ऋ॒तं ध॒रुणं॑ धारयन्त य॒ज्ञस्य॑ शा॒के प॑र॒मे व्यो॑मन् । दि॒वो धर्म॑न्ध॒रुणे॑ से॒दुषो॒ नॄञ्जा॒तैरजा॑ताँ अ॒भि ये न॑न॒क्षुः ॥ (२)
जो यजमान ऋत्विजों की सहायता से स्वर्ण को धारण करने वाले, यज्ञशाला में बैठे हुए एवं नेता देवों को प्राप्त करते हैँ, वे यजमान यज्ञ के धारक व सत्यस्वरूप अग्नि को उत्तर वेदीरूपी उत्तम स्थान पर धारण करते हैं. (२)
Those who, with the help of the host ritwijas, who wear gold, sit in the yajnashala and receive the leader gods, they hold the host yajna's holder and satyaswaroop agni in the best place of the north altar. (2)