हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 5.25.2

मंडल 5 → सूक्त 25 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 5)

ऋग्वेद: | सूक्त: 25
स हि स॒त्यो यं पूर्वे॑ चिद्दे॒वास॑श्चि॒द्यमी॑धि॒रे । होता॑रं म॒न्द्रजि॑ह्व॒मित्सु॑दी॒तिभि॑र्वि॒भाव॑सुम् ॥ (२)
प्राचीन ऋषियों एवं देवों ने देवों को बुलाने वाले, प्रसन्नताकारक जीभ वाले, शोभन दीप्तियों से युक्त एवं प्रभा वाले जिस अग्नि को प्रज्वलित किया था, वे सत्यप्रतिज्ञ हैं. (२)
The agni that the ancient sages and gods ignited by the ancient sages and devas that called the gods, with happy tongues, with adornment lights and with aura, are true. (2)