हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 5.30.6

मंडल 5 → सूक्त 30 → श्लोक 6 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 5)

ऋग्वेद: | सूक्त: 30
तुभ्येदे॒ते म॒रुतः॑ सु॒शेवा॒ अर्च॑न्त्य॒र्कं सु॒न्वन्त्यन्धः॑ । अहि॑मोहा॒नम॒प आ॒शया॑नं॒ प्र मा॒याभि॑र्मा॒यिनं॑ सक्ष॒दिन्द्रः॑ ॥ (६)
हे इंद्र! ये उत्तम सुख देने वाले स्तोता स्तुतियों द्वारा तुम्हारी प्रशंसा करते हैं एवं तुम्हें पिलाने के लिए अन्नरूपी सोम निचोड़ते हैं. इंद्र ने अपनी शक्तियों द्वारा देवों को बाधा पहुंचाने वाले एवं जलसमूह को रोककर सोए हुए मायावी वृत्र राक्षस को हराया था. (६)
O Indra! These best-giving hymns praise you with praises and squeeze the anarrupi som to make you drink. Indra had defeated the elusive Vrithra demon, who had obstructed the gods by his powers and stopped the water body. (6)