हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 5.39.3

मंडल 5 → सूक्त 39 → श्लोक 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 5)

ऋग्वेद: | सूक्त: 39
यत्ते॑ दि॒त्सु प्र॒राध्यं॒ मनो॒ अस्ति॑ श्रु॒तं बृ॒हत् । तेन॑ दृ॒ळ्हा चि॑दद्रिव॒ आ वाजं॑ दर्षि सा॒तये॑ ॥ (३)
हे इंद्र! तुम दान करने के विषय में बहुत प्रसिद्ध हो. हे वञ्रधारी! तुम सारपूर्ण अन्न देकर हमारे प्रति आदर दिखाते हो. (३)
O Indra! You are very famous about donating. O vajradhari! You show respect to us by giving us rich food. (3)