ऋग्वेद (मंडल 5)
इति॑ चि॒न्नु प्र॒जायै॑ पशु॒मत्यै॒ देवा॑सो॒ वन॑ते॒ मर्त्यो॑ व॒ आ दे॑वासो वनते॒ मर्त्यो॑ वः । अत्रा॑ शि॒वां त॒न्वो॑ धा॒सिम॒स्या ज॒रां चि॑न्मे॒ निरृ॑तिर्जग्रसीत ॥ (१७)
हे देवो! यजमान लोग संतान एवं पशु पाने के लिए शीघ्र तुम्हारी सेवा करते है. निर्त्ति इस यज्ञ में उत्तम अन्न द्वारा मेरा शरीर पुष्ट बनावें एवं मेरा बुढ़ापा दूर करें. (१७)
Oh, God! Hosts serve you quickly to get children and animals. Let the nirti make my body strong with the best food in this yajna and remove my old age. (17)