हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 5.45.4

मंडल 5 → सूक्त 45 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 5)

ऋग्वेद: | सूक्त: 45
सू॒क्तेभि॑र्वो॒ वचो॑भिर्दे॒वजु॑ष्टै॒रिन्द्रा॒ न्व१॒॑ग्नी अव॑से हु॒वध्यै॑ । उ॒क्थेभि॒र्हि ष्मा॑ क॒वयः॑ सुय॒ज्ञा आ॒विवा॑सन्तो म॒रुतो॒ यज॑न्ति ॥ (४)
हे इंद्र एवं अग्नि! हम लोग अपनी रक्षा के लिए तुम दोनों को देवों द्वारा स्वीकार करने योग्य उत्तम स्तुतियों से बुलाते हैं. शोभन यज्ञ करने वाले ज्ञानीजन मरुतों के समान यज्ञसेवा करते हुए तुम दोनों को प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं. (४)
O Indra and Agni! We call you both with the best praises accepted by the gods to protect ourselves. The wise men who perform shobhan yajna try to please both of you by performing yajna seva like the maruts. (4)