ऋग्वेद (मंडल 5)
को वो॑ म॒हान्ति॑ मह॒तामुद॑श्नव॒त्कस्काव्या॑ मरुतः॒ को ह॒ पौंस्या॑ । यू॒यं ह॒ भूमिं॑ कि॒रणं॒ न रे॑जथ॒ प्र यद्भर॑ध्वे सुवि॒ताय॑ दा॒वने॑ ॥ (४)
हे पूजायोग्य मरुतो! तुम्हारी पूजा कौन कर सकता है? तुम लोगों की स्तुतियां कौन पढ़ सकता है? तुम्हारे पौरुष का वर्णन कौन कर सकता है? जब तुम उत्तम जल का दान करने के लिए वृष्टि करते हो तो धरती को किरण के समान कंपित बना देते हो. (४)
O godly Maruto! Who can worship you? Who can read your praises? Who can describe your virility? When you rain to donate the best water, you make the earth tremble like a ray. (4)