ऋग्वेद (मंडल 5)
प्र वो॑ मि॒त्राय॑ गायत॒ वरु॑णाय वि॒पा गि॒रा । महि॑क्षत्रावृ॒तं बृ॒हत् ॥ (१)
हे ऋत्विजो! तुम दूर तक फैलने वाली वाणी से मित्र और वरुण की स्तुति करो. हे महाबली मित्र व वरुण! इस विशाल यज्ञ में आओ. (१)
Hey Ritvijo! Praise your friend and Varun with a voice that spreads far and wide. O mahabali friend and Varun! Come to this huge yagna. (1)