ऋग्वेद (मंडल 5)
स च॑क्रमे मह॒तो निरु॑रुक्र॒मः स॑मा॒नस्मा॒त्सद॑स एव॒याम॑रुत् । य॒दायु॑क्त॒ त्मना॒ स्वादधि॒ ष्णुभि॒र्विष्प॑र्धसो॒ विम॑हसो॒ जिगा॑ति॒ शेवृ॑धो॒ नृभिः॑ ॥ (४)
विशाल गति वाले मरुद्गण विस्तृत एवं साधारण अंतरिक्ष से निकले हैं. एवयामरुत् उनसे आने की प्रार्थना करते हैं. मरुत् जब अपने आप चलने वाले घोड़े रथ में जोड़ते हैं, तब वे अद्वितीय, विशिष्ट बलयुक्त एवं सुख बढ़ाने वाले जान पड़ते हैं. (४)
Large-speed deserts have come out of wide and ordinary space. Avyamrut prays to them to come. When the deserts add their own-moving horses to the chariot, they appear to be unique, with a special force and a pleasure booster. (4)