ऋग्वेद (मंडल 6)
इ॒ममू॒ षु वो॒ अति॑थिमुष॒र्बुधं॒ विश्वा॑सां वि॒शां पति॑मृञ्जसे गि॒रा । वेतीद्दि॒वो ज॒नुषा॒ कच्चि॒दा शुचि॒र्ज्योक्चि॑दत्ति॒ गर्भो॒ यदच्यु॑तम् ॥ (१)
हे भरद्वाज! तुम प्रातःकाल जागने वाले, प्रजाओं के रक्षक, सदा गतिशील एवं स्वतः पवित्र अग्नि को स्तुतियों द्वारा भली-भांति प्रसन्न करो. अग्नि सदा द्युलोक से यज्ञ में आते हैं एवं दोषरहित हव्य को खाते हैं. (१)
O Lord! May you please the one who wakes up in the morning, the protector of the people, the ever-moving and self-sufficient holy agni with praises. Agni always comes to the yajna from Dyulok and eats the faultless havya. (1)