ऋग्वेद (मंडल 6)
गावो॒ भगो॒ गाव॒ इन्द्रो॑ मे अच्छा॒न्गावः॒ सोम॑स्य प्रथ॒मस्य॑ भ॒क्षः । इ॒मा या गावः॒ स ज॑नास॒ इन्द्र॑ इ॒च्छामीद्धृ॒दा मन॑सा चि॒दिन्द्र॑म् ॥ (५)
गाएं हमारा धन हों. इंद्र हमें गाएं दें. गाएं हमें उत्तम सोमरस के रूप में भक्ष्य दें. हे मनुष्यो! इसी प्रकार की गाएं इंद्र बन जाती हैं. हम श्रद्धापूर्ण मन से इंद्र को चाहते हैं. (५)
Sing be our wealth. Indra sing to us. Sing give us the food as the best somras. O men! Similar songs become Indra. We want Indra with a reverential mind. (5)