ऋग्वेद (मंडल 6)
स्वा॒दुष्किला॒यं मधु॑माँ उ॒तायं ती॒व्रः किला॒यं रस॑वाँ उ॒तायम् । उ॒तो न्व१॒॑स्य प॑पि॒वांस॒मिन्द्रं॒ न कश्च॒न स॑हत आह॒वेषु॑ ॥ (१)
यह निचोड़ा हुआ सोमरस स्वादिष्ट, मधुर, तीव्र एवं रसवाला है. इसे पीने वाले इंद्र के सामने युद्धों में कोई ठहर नहीं सकता. (१)
This squeezed somras is delicious, sweet, intense and juicy. No one can stand in wars in front of Indra who drinks it. (1)