हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 6.6.5

मंडल 6 → सूक्त 6 → श्लोक 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 6)

ऋग्वेद: | सूक्त: 6
अध॑ जि॒ह्वा पा॑पतीति॒ प्र वृष्णो॑ गोषु॒युधो॒ नाशनिः॑ सृजा॒ना । शूर॑स्येव॒ प्रसि॑तिः क्षा॒तिर॒ग्नेर्दु॒र्वर्तु॑र्भी॒मो द॑यते॒ वना॑नि ॥ (५)
जैसे चुराई गई गायों के लिए लड़ने वाले इंद्र का वज्र बार-बार चलता था, उसी प्रकार कामवर्षी अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं. वीरों की दृढ़ता के समान असह्य अग्नि की भयानक ज्वालाएं वनों को जलाती हैं. (५)
Just as indra's thunderbolt, who fought for stolen cows, used to move again and again, so do the flames of the kamvarshi agni. Like the perseverance of the heroes, The devastating flames of the harsh agni burn the forests. (5)