हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 6.68.1

मंडल 6 → सूक्त 68 → श्लोक 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 6)

ऋग्वेद: | सूक्त: 68
श्रु॒ष्टी वां॑ य॒ज्ञ उद्य॑तः स॒जोषा॑ मनु॒ष्वद्वृ॒क्तब॑र्हिषो॒ यज॑ध्यै । आ य इन्द्रा॒वरु॑णावि॒षे अ॒द्य म॒हे सु॒म्नाय॑ म॒ह आ॑व॒वर्त॑त् ॥ (१)
हे महान्‌ इंद्र व वरुण! आज यज्ञ में ऋत्विजों द्वारा तुम्हारे निमित्त वही सोमरस तैयार किया गया है, जो मनु के समान यजमान द्वारा कुश बिछाने के पश्चात्‌ महान्‌ एवं सुख के लिए किया जाता है. (१)
O great Indra and Varun! Today in the yajna, the same somras have been prepared for you by the ritvijas, which is done for greatness and happiness after the kush is laid by the host like Manu. (1)