ऋग्वेद (मंडल 6)
या विश्वा॑सां जनि॒तारा॑ मती॒नामिन्द्रा॒विष्णू॑ क॒लशा॑ सोम॒धाना॑ । प्र वां॒ गिरः॑ श॒स्यमा॑ना अवन्तु॒ प्र स्तोमा॑सो गी॒यमा॑नासो अ॒र्कैः ॥ (२)
हे समस्त स्तुतियों के जनक एवं कलशरूप में सोमरस के आधार इंद्र एवं विष्णु! बोली जाती हुई स्तुतियां तुम्हें प्राप्त हों. स्तोताओं द्वारा गाए जाते हुए स्तोत्र तुम्हारे पास पहुंचें. (२)
O father of all praises and indra and vishnu, the base of somras in the form of kalash! May you receive spoken praises. Reach out to you as you sing by the psalms. (2)