ऋग्वेद (मंडल 7)
उ॒तासि॑ मैत्रावरु॒णो व॑सिष्ठो॒र्वश्या॑ ब्रह्म॒न्मन॒सोऽधि॑ जा॒तः । द्र॒प्सं स्क॒न्नं ब्रह्म॑णा॒ दैव्ये॑न॒ विश्वे॑ दे॒वाः पुष्क॑रे त्वाददन्त ॥ (११)
हे वसिष्ठ! तुम मित्र व वरुण के पुत्र हो. हे ब्रह्मन्! तुम उर्वशी के मन से उत्पन्न हुए हो. उर्वशी को देखकर मित्र व अरुण का वीर्य स्खलित हुआ था. उस समय सभी देवों ने दिव्य स्तोत्र बोलते हुए तुम्हें पुष्कर में धारण किया था. (११)
O Vasishtha! You are the son of a friend and Varun. O Brahman! You originated from Urvashi's mind. Seeing Urvashi, the semen of the friend and Arun was ejaculated. At that time all the gods had held you in Pushkar while speaking the divine hymn. (11)