ऋग्वेद (मंडल 7)
नि॒चे॒तारो॒ हि म॒रुतो॑ गृ॒णन्तं॑ प्रणे॒तारो॒ यज॑मानस्य॒ मन्म॑ । अ॒स्माक॑म॒द्य वि॒दथे॑षु ब॒र्हिरा वी॒तये॑ सदत पिप्रिया॒णाः ॥ (२)
मरुद्गण स्तुति करने वाले मनुष्य को खोजते हैं एवं यजमान की कामना पूरी करते हैं. हे मरुतो! तुम लोग प्रसन्न होकर सोमरस पीने के लिए हमारे यज्ञ में कुशों पर बैठो. (२)
The deserts search for a man who praises and fulfill the wishes of the host. O Maruto! You people are pleased to sit on the kushas in our yajna to drink somras. (2)