ऋग्वेद (मंडल 7)
यं त्राय॑ध्व इ॒दमि॑दं॒ देवा॑सो॒ यं च॒ नय॑थ । तस्मा॑ अग्ने॒ वरु॑ण॒ मित्रार्य॑म॒न्मरु॑तः॒ शर्म॑ यच्छत ॥ (१)
हे देवो! स्तोता को भय से बचाओ. हे मरुतो! तुम अग्नि, वरुण, मित्र और अर्यमा जिसे अच्छे मार्ग पर ले आते हो, उसे सुख दो. (१)
Oh, God! Save the psalm from fear. O Maruto! Give joy to the agni, Varuna, the friend and the one whom you bring to the good path. (1)
ऋग्वेद (मंडल 7)
यु॒ष्माकं॑ देवा॒ अव॒साह॑नि प्रि॒य ई॑जा॒नस्त॑रति॒ द्विषः॑ । प्र स क्षयं॑ तिरते॒ वि म॒हीरिषो॒ यो वो॒ वरा॑य॒ दाश॑ति ॥ (२)
हे देवो! तुम्हारे द्वारा रक्षित प्रियदिन में जो यज्ञ करता है, जो शत्रुओं पर आक्रमण करता है, जो अपने निवासस्थान को बढ़ाता है, वह तुम्हें अधिक हव्य इसलिए देता है कि तुम्हें दूसरी जगह जाने से रोक सके. (२)
Oh, God! The one who performs the yajna in the beloved day you have protected, which attacks the enemies, who increases his dwelling place, gives you more pleasure in order to prevent you from going to another place. (2)
ऋग्वेद (मंडल 7)
न॒हि व॑श्चर॒मं च॒न वसि॑ष्ठः परि॒मंस॑ते । अ॒स्माक॑म॒द्य म॑रुतः सु॒ते सचा॒ विश्वे॑ पिबत का॒मिनः॑ ॥ (३)
हे मरुतो! तुम में जो अवर है, मैं उसे छोड़कर भी स्तुति नहीं करता. हमारा सोम निचुड़ जाने पर तुम सब सोमाभिलाषी बनकर एवं मिलकर उसे पिओ. (३)
O Maruto! I do not praise what is inferior to you except him. When our som nichad is gone, all of you become somabhilas and drink it together. (3)
ऋग्वेद (मंडल 7)
न॒हि व॑ ऊ॒तिः पृत॑नासु॒ मर्ध॑ति॒ यस्मा॒ अरा॑ध्वं नरः । अ॒भि व॒ आव॑र्त्सुम॒तिर्नवी॑यसी॒ तूयं॑ यात पिपीषवः ॥ (४)
हे नेता मरुतो! जिसे तुम अभिलषित धन देते हो, उसे तुम्हारी रक्षा युद्ध में शत्रुओं से चाहती है. तुम्हारी नवीन कृपा हमारे सामने आवे. हे सोमपान के अभिलाषी मरुतो! तुम जल्दी आओ. (४)
O leader Maruto! To whom you give the money you have received, your protection wants from enemies in war. May your new grace come before us. O Maruto, the desire of Somapan! You come quickly. (4)
ऋग्वेद (मंडल 7)
ओ षु घृ॑ष्विराधसो या॒तनान्धां॑सि पी॒तये॑ । इ॒मा वो॑ ह॒व्या म॑रुतो र॒रे हि कं॒ मो ष्व१॒॑न्यत्र॑ गन्तन ॥ (५)
हे परस्पर मिले हुए धन वाले मरुतो! तुम सोमरूपी हव्य भोगने के लिए भली प्रकार आओ. मैं तुम्हें यह हवि देता हूं. तुम दूसरी जगह मत जाओ. (५)
O maruto with mutually mixed wealth! You come well to enjoy the Somrupi havya. I'll give you this. You don't go to another place. (5)
ऋग्वेद (मंडल 7)
आ च॑ नो ब॒र्हिः सद॑तावि॒ता च॑ नः स्पा॒र्हाणि॒ दात॑वे॒ वसु॑ । अस्रे॑धन्तो मरुतः सो॒म्ये मधौ॒ स्वाहे॒ह मा॑दयाध्वै ॥ (६)
हे मरुतो! हमारे कुशों पर बैठो. तुम हमारा चाहा हुआ धन देने के लिए हमारे समीप आओ. इस यज्ञ में तुम मदकारक सोमरस को स्वाहा कहकर पिओ और प्रमुदित बनो. (६)
O Maruto! Sit on our cushions. Come near us to give us the money we want. In this yajna, you should drink the madkari somras as swaha and become merry. (6)
ऋग्वेद (मंडल 7)
स॒स्वश्चि॒द्धि त॒न्व१॒ः॑ शुम्भ॑माना॒ आ हं॒सासो॒ नील॑पृष्ठा अपप्तन् । विश्वं॒ शर्धो॑ अ॒भितो॑ मा॒ नि षे॑द॒ नरो॒ न र॒ण्वाः सव॑ने॒ मद॑न्तः ॥ (७)
हे छिपे हुए मरुतो! तुम अपने अंगों को अलंकारों से सुशोभित करते हुए नीले रंग वाले हंसों के समान आओ. मेरे यज्ञ में जिस तरह सब मनुष्य प्रसन्न हैं, उसी प्रकार मरुद्गण भी आकर बैठें. (७)
O hidden Maruto! You come to the same as blue swans, beautifying your limbs with ornaments. Just as all men are happy in My yajna, so also the deserts should come and sit. (7)
ऋग्वेद (मंडल 7)
यो नो॑ मरुतो अ॒भि दु॑र्हृणा॒युस्ति॒रश्चि॒त्तानि॑ वसवो॒ जिघां॑सति । द्रु॒हः पाशा॒न्प्रति॒ स मु॑चीष्ट॒ तपि॑ष्ठेन॒ हन्म॑ना हन्तना॒ तम् ॥ (८)
हे प्रशंसा के योग्य मरुतो! सबके द्वारा तिरस्कृत जो आदमी अशोभन रूप से क्रोध करके हमारे चित्त को दुःखी करना चाहता है, वह पापों के द्रोही वरुण देव के पाशों से हमें बांधेगा. तुम उसे तापकारी आयुध से मारो. (८)
O Maruto worthy of praise! The man who is despised by all, who wants to grieve our minds by being unbecoming of anger, will bind us to the loops of Varuna Dev, the enemy of sins. You hit him with a heating armament. (8)