ऋग्वेद (मंडल 7)
उद्वे॑ति सु॒भगो॑ वि॒श्वच॑क्षाः॒ साधा॑रणः॒ सूर्यो॒ मानु॑षाणाम् । चक्षु॑र्मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य दे॒वश्चर्मे॑व॒ यः स॒मवि॑व्य॒क्तमां॑सि ॥ (१)
शोभनभाग्य वाले, सब मनुष्यों के प्रति समान, मित्र एवं वरुण के चक्षु के समान एवं दीप्तिशाली सूर्य उदित हो रहे हैं. वे चमड़े के समान अंधकार को लपेटते हैं. (१)
The bright sun is rising, like the eyes of friends and Varuna, equal to all human beings, with good fortune, and like the eyes of Varuna. They wrap up the darkness like leather. (1)