ऋग्वेद (मंडल 7)
प्र वा॒मन्धां॑सि॒ मद्या॑न्यस्थु॒ररं॑ गन्तं ह॒विषो॑ वी॒तये॑ मे । ति॒रो अ॒र्यो हव॑नानि श्रु॒तं नः॑ ॥ (२)
हे अश्विनीकुमारो! तुम्हारे लिए मदकारक अन्न स्थापित हैं. तुम हमारा हव्य भक्षण करने के लिए जल्दी आओ. तुम हमारे शत्रुओं की पुकार का तिरस्कार करके हमारी पुकार सुनो. (२)
O Ashwinikumaro! The food grains are installed for you. You come quickly to devour our havya. Listen to our call, despising the call of our enemies. (2)