हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 7.86.6

मंडल 7 → सूक्त 86 → श्लोक 6 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 86
न स स्वो दक्षो॑ वरुण॒ ध्रुतिः॒ सा सुरा॑ म॒न्युर्वि॒भीद॑को॒ अचि॑त्तिः । अस्ति॒ ज्याया॒न्कनी॑यस उपा॒रे स्वप्न॑श्च॒नेदनृ॑तस्य प्रयो॒ता ॥ (६)
हे वरुण! वह पाप हमारे बल के कारण नहीं है. प्रमाद, क्रोध, जुआ अथवा अज्ञान के रूप में देवगति ही उसका कारण है. छोटे को पाप की ओर प्रवृत्त करने में बड़ा कारण बनता है. स्वप्न भी पाप से मिलाने वाला है. (६)
Hey Varun! That sin is not due to our force. Godly motion in the form of prism, anger, gambling or ignorance is the cause. It causes the small to be inclined towards sin. The dream is also going to be mixed with sin. (6)