हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 7.97.10

मंडल 7 → सूक्त 97 → श्लोक 10 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 97
बृह॑स्पते यु॒वमिन्द्र॑श्च॒ वस्वो॑ दि॒व्यस्ये॑शाथे उ॒त पार्थि॑वस्य । ध॒त्तं र॒यिं स्तु॑व॒ते की॒रये॑ चिद्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥ (१०)
हे बृहस्पति! तुम एवं इंद्र दोनों प्रकार के पार्थिव एवं दिव्य धन के स्वामी हो. इसलिए तुम स्तुतिकर्तता को धन देते हो. हे देवो! तुम कल्याणसाधनों द्वारा हमारा सदा पालन करो. (१०)
O Jupiter! You and Indra are the masters of both earthly and divine wealth. That's why you give money to praise. Oh, God! You always follow us by means of well-being. (10)