हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 7.98.2

मंडल 7 → सूक्त 98 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 98
यद्द॑धि॒षे प्र॒दिवि॒ चार्वन्नं॑ दि॒वेदि॑वे पी॒तिमिद॑स्य वक्षि । उ॒त हृ॒दोत मन॑सा जुषा॒ण उ॒शन्नि॑न्द्र॒ प्रस्थि॑तान्पाहि॒ सोमा॑न् ॥ (२)
हे इंद्र! बीते हुए दिनों में जिस शोभन अन्नरूप सोम को तुम धारण करते थे, अब भी प्रतिदिन उसी सोम को पीने की अभिलाषा करो. हे इंद्र! तुम हृदय एवं मन से हमारे कल्याण की कामना करते हुए सम्मुख रखे सोम को पिओ. (२)
O Indra! The shobhan annarup som that you used to wear in the past days, still wish to drink the same som every day. O Indra! Drink the mon in front of you wishing for our welfare from the heart and heart. (2)