ऋग्वेद (मंडल 8)
अ॒सु॒न्वामि॑न्द्र सं॒सदं॒ विषू॑चीं॒ व्य॑नाशयः । सो॒म॒पा उत्त॑रो॒ भव॑न् ॥ (१५)
हे सोमपानकर्ता इंद्र! तुमने अत्यंत उत्कृष्ट होकर सोमरस न निचोड़ने वाले लोगों को परस्पर विरोध द्वारा निर्बल बनाकर समाप्त किया. (१५)
O Sompanaker Indra! You have excelled and ended the people who do not squeeze the Somras by making them weak by mutual opposition. (15)