हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 8.33.10

मंडल 8 → सूक्त 33 → श्लोक 10 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 33
स॒त्यमि॒त्था वृषेद॑सि॒ वृष॑जूति॒र्नोऽवृ॑तः । वृषा॒ ह्यु॑ग्र श‍ृण्वि॒षे प॑रा॒वति॒ वृषो॑ अर्वा॒वति॑ श्रु॒तः ॥ (१०)
हे उग्र इंद्र! यह सत्य है कि तुम अभिलाषापूरक, अभिलाषापूरकों द्वारा आकृष्ट व शन्रु से बिना घिरे हुए हो. हे उग्र इंद्र! तुम अभिलाषापूरक सुने जाते हो. तुम दूर एवं समीप के स्थानों में अभिलाषापूरक के रूप में प्रसिद्ध हो. (१०)
O furious Indra! It is true that you are full of desires, attracted by desirefuls and without being surrounded by shantru. O furious Indra! You are heard full of desire. You are famous as a wisher in distant and nearby places. (10)