हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 8.45.20

मंडल 8 → सूक्त 45 → श्लोक 20 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 45
आ त्वा॑ र॒म्भं न जिव्र॑यो रर॒भ्मा श॑वसस्पते । उ॒श्मसि॑ त्वा स॒धस्थ॒ आ ॥ (२०)
हे बलपति इंद्र! कमजोर बूढ़ा जिस प्रकार लकड़ी का सहारा लेता है, उसी प्रकार हम तुम्हें प्राप्त करें एवं यज्ञ में तुम्हारी कामना करें. (२०)
O Balapati Indra! Just as the weak old man resorts to wood, so let us get you and desire you in the yajna. (20)