ऋग्वेद (मंडल 8)
अव॑ चष्ट॒ ऋची॑षमोऽव॒ताँ इ॑व॒ मानु॑षः । जु॒ष्ट्वी दक्ष॑स्य सो॒मिनः॒ सखा॑यं कृणुते॒ युजं॑ भ॒द्रा इन्द्र॑स्य रा॒तयः॑ ॥ (६)
मनुष्य जिस प्रकार कुएं को देखता है, उसी प्रकार स्तुतियों से घिरे हुए इंद्र हमें कृपापूर्वक देखते हैं एवं देखने के बाद सोमरस वाले यजमान को अपना मित्र बना लेते हैं. इंद्र के दान कल्याण करने वाले हैं. (६)
Just as man looks at the well, indra, surrounded by praises, looks at us graciously and after seeing it, he makes the host of somras his friend. Indra's donations are welfare-doers. (6)