ऋग्वेद (मंडल 8)
यो राजा॑ चर्षणी॒नां याता॒ रथे॑भि॒रध्रि॑गुः । विश्वा॑सां तरु॒ता पृत॑नानां॒ ज्येष्ठो॒ यो वृ॑त्र॒हा गृ॒णे ॥ (१)
मैं प्रजाओं के राजा, रथ द्वारा चलने वाले, गमन में निर्बाध, सभी सेनाओं को तारने वाले, ज्येष्ठ एवं वृत्रह॑ता इंद्र की स्तुति करता हूं. (१)
I praise Indra, the king of the people, who walks by the chariot, who walks uninterrupted in transit, who has wired all armies, the eldest and the vrithrahuta. (1)
ऋग्वेद (मंडल 8)
इन्द्रं॒ तं शु॑म्भ पुरुहन्म॒न्नव॑से॒ यस्य॑ द्वि॒ता वि॑ध॒र्तरि॑ । हस्ता॑य॒ वज्रः॒ प्रति॑ धायि दर्श॒तो म॒हो दि॒वे न सूर्यः॑ ॥ (२)
हे पुरुहन्मा ऋषि! तुम अपनी रक्षा के लिए इंद्र को अलंकृत करो. तुम्हारे विधाता इंद्र का स्वभाव उग्र एवं कोमल दो प्रकार का है. इंद्र अपने हाथ में दर्शनीय एवं आकाश में सूर्य के समान दिखाई देने वाला वज्र धारण करते हैं. (२)
O Sage Puruhanma! You embellish Indra for your protection. The nature of your vidhata Indra is of two types, fierce and gentle. Indra holds a thunderbolt visible in his hand and looks like the sun in the sky. (2)
ऋग्वेद (मंडल 8)
नकि॒ष्टं कर्म॑णा नश॒द्यश्च॒कार॑ स॒दावृ॑धम् । इन्द्रं॒ न य॒ज्ञैर्वि॒श्वगू॑र्त॒मृभ्व॑स॒मधृ॑ष्टं धृ॒ष्ण्वो॑जसम् ॥ (३)
जो यज्ञसाधनों द्वारा सदा वृद्धि करने वाले, सबके स्तुतियोग्य, महान् अन्यों द्वारा पराभवरहित एवं सबको दबाने वाली शक्ति से युक्त इंद्र को यज्ञसाधनों द्वारा अपने अनुकूल बना लेते हैं, उनके कर्म में कोई व्यक्ति बाधा उत्पन्न नहीं कर सकता. (३)
No one can hinder the karma of those who have always increased by sacrificial means, who are praiseworthy of all, without defeat by great others and with the power of suppressing all. (3)
ऋग्वेद (मंडल 8)
अषा॑ळ्हमु॒ग्रं पृत॑नासु सास॒हिं यस्मि॑न्म॒हीरु॑रु॒ज्रयः॑ । सं धे॒नवो॒ जाय॑माने अनोनवु॒र्द्यावः॒ क्षामो॑ अनोनवुः ॥ (४)
मैं दूसरों के लिए असहनीय, उग्र व शत्रु सेनाओं को पराजित करने वाले इंद्र की स्तुति करता हूं. इंद्र के जन्म के समय विशाल एवं वेगशालिनी गायों ने, ह्युलोक तथा धरती ने स्तुति की थी. (४)
I praise Indra, who has defeated the unbearable, fierce and hostile armies for others. At the time of Indra's birth, the giant and vegetative cows, The Hulok and the earth had praised him. (4)
ऋग्वेद (मंडल 8)
यद्द्याव॑ इन्द्र ते श॒तं श॒तं भूमी॑रु॒त स्युः । न त्वा॑ वज्रिन्स॒हस्रं॒ सूर्या॒ अनु॒ न जा॒तम॑ष्ट॒ रोद॑सी ॥ (५)
हे इंद्र! यदि सौ द्यौ एवं सौ भूमियां हो जावें, तब भी तुम्हें नापा नहीं जा सकता. हे वज्रधारी इंद्र! सौ सूर्य तुम्हें प्रकाशित नहीं कर सकते और न आठ द्यावा-पृथिवी तुम्हारी सीमा बना सकते हैं. (५)
O Indra! Even if there are a hundred or so many lands, you cannot be measured. O thunderbolt Indra! A hundred suns cannot illuminate you, nor can the eight earths make your limits. (5)
ऋग्वेद (मंडल 8)
आ प॑प्राथ महि॒ना वृष्ण्या॑ वृष॒न्विश्वा॑ शविष्ठ॒ शव॑सा । अ॒स्माँ अ॑व मघव॒न्गोम॑ति व्र॒जे वज्रि॑ञ्चि॒त्राभि॑रू॒तिभिः॑ ॥ (६)
हे अभिलाषापूरक, अतिशय शक्तिशाली, धनस्वामी एवं वज्रधारी इंद्र! तुमने अपनी महान् शक्ति द्वारा शत्रुओं की आयुध बरसाने वाली सेनाओं को वश में किया है. तुम नाना रक्षासाधनों द्वारा शत्रुओं से हमारी गोशाला की रक्षा करो. (६)
O desireful, very powerful, wealthy and thunderbolt Indra! You have subdued the armies that rain the arms of enemies by your great power. You protect our goshala from enemies by various defense means. (6)
ऋग्वेद (मंडल 8)
न सी॒मदे॑व आप॒दिषं॑ दीर्घायो॒ मर्त्यः॑ । एत॑ग्वा चि॒द्य एत॑शा यु॒योज॑ते॒ हरी॒ इन्द्रो॑ यु॒योज॑ते ॥ (७)
हे दीर्घ आयु वाले इंद्र! देवों को न मानने वाला मनुष्य सब अन्न प्राप्त नहीं करता. जो मनुष्य इंद्र के श्वेतवर्ण अश्वों को रथ में जोड़ता है, इंद्र अपने घोड़ों की सहायता से उसी के यज्ञ में आते हैं. (७)
O long-aged Indra! A man who does not believe in the gods does not receive all the food. The man who adds indra's white-coloured horses to the chariot, Indra comes to his yajna with the help of his horses. (7)
ऋग्वेद (मंडल 8)
तं वो॑ म॒हो म॒हाय्य॒मिन्द्रं॑ दा॒नाय॑ स॒क्षणि॑म् । यो गा॒धेषु॒ य आर॑णेषु॒ हव्यो॒ वाजे॒ष्वस्ति॒ हव्यः॑ ॥ (८)
हे महान् ऋत्विजो! दान पाने के लिए तुम उस पूज्य इंद्र की सेवा करो. इंद्र जलप्राप्ति के लिए निचले स्थानों में पहुंचने के लिए तथा युद्ध में विजय पाने के लिए बुलाने योग्य हैं. (८)
O great Ritvizzo! To get the donation you serve that revered Indra. Indra is worthy of being called to reach the lower places for water and to win the war. (8)