ऋग्वेद (मंडल 8)
न तम॑ग्ने॒ अरा॑तयो॒ मर्तं॑ युवन्त रा॒यः । यं त्राय॑से दा॒श्वांस॑म् ॥ (४)
हे अग्नि! तुम जिस हव्यदाता यजमान का पालन करते हो, उसे धनी एवं दानरहित लोग अपने से अलग नहीं कर सकते. (४)
O agni! The husbandly host you follow cannot be separated from you by the rich and the unsung of charity. (4)