हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 87
इन्द्रा॑य॒ साम॑ गायत॒ विप्रा॑य बृह॒ते बृ॒हत् । ध॒र्म॒कृते॑ विप॒श्चिते॑ पन॒स्यवे॑ ॥ (१)
हे उदगाताओ! मेधावी, महान्‌, यज्ञकर्मकर्तता, विद्वान्‌ एवं स्तोत्रों के अभिलाषी इंद्र को बृहत्‌ साम गाकर सुनाओ. (१)
O ugatao! Sing a great sum to indra, the bright, the great, the seeker of the yagnakarta, the scholar and the desire of the hymns. (1)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 87
त्वमि॑न्द्राभि॒भूर॑सि॒ त्वं सूर्य॑मरोचयः । वि॒श्वक॑र्मा वि॒श्वदे॑वो म॒हाँ अ॑सि ॥ (२)
हे इंद्र! तुम शत्रुओं को हराने वाले हो. तुमने सूर्य को तेजस्वी बनाया है. तुम विश्वकर्मा, विश्वेदेव एवं महान्‌ हो. (२)
O Indra! You are going to defeat the enemies. You have made the sun bright. You are Vishwakarma, Vishvadev and Great. (2)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 87
वि॒भ्राज॒ञ्ज्योति॑षा॒ स्व१॒॑रग॑च्छो रोच॒नं दि॒वः । दे॒वास्त॑ इन्द्र स॒ख्याय॑ येमिरे ॥ (३)
हे इंद्र! तुम अपनी ज्योति द्वारा सूर्य के प्रकाशक बनकर स्वर्ग को दीप्तिशाली बनाने गए थे. देवों ने तुम्हारी मित्रता के लिए प्रयत्न किया था. (३)
O Indra! You went to make heaven radiant by becoming the illuminator of the sun through your light. The gods tried for your friendship. (3)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 87
एन्द्र॑ नो गधि प्रि॒यः स॑त्रा॒जिदगो॑ह्यः । गि॒रिर्न वि॒श्वत॑स्पृ॒थुः पति॑र्दि॒वः ॥ (४)
हे प्रियतम, महान्‌ लोगों को जीतने वाले, किसी के द्वारा न छिपने वाले, पर्वत के समान चारों ओर विस्तृत एवं स्वर्ग के स्वामी इंद्र! तुम हमारे पास आओ. (४)
O beloved, the conqueror of the great people, who is not hidden by anyone, wide around like a mountain and the lord of heaven Indra! You come to us. (4)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 87
अ॒भि हि स॑त्य सोमपा उ॒भे ब॒भूथ॒ रोद॑सी । इन्द्रासि॑ सुन्व॒तो वृ॒धः पति॑र्दि॒वः ॥ (५)
हे सत्यरूप वाले एवं सोमपानकर्ता इंद्र! तुमने द्यावा-पृथिवी को पराजित किया है. तुम सोमरस निचोड़ने वाले के वर्धक एवं स्वर्ग के स्वामी हो. (५)
O Indra, the one of truth and the doomshak! You have defeated Dyava-Prithvivi. You are the enhancer of the somras squeezer and the master of heaven. (5)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 87
त्वं हि शश्व॑तीना॒मिन्द्र॑ द॒र्ता पु॒रामसि॑ । ह॒न्ता दस्यो॒र्मनो॑र्वृ॒धः पति॑र्दि॒वः ॥ (६)
हे इंद्र! तुम शत्रुओं की अनेक नगरियों को तोड़ने वाले हो. तुम दस्युजनों के हंता, मनुष्यों को बढ़ाने वाले और स्वर्ग के स्वामी हो. (६)
O Indra! You are going to break many cities of enemies. You are the heirs of bandits, the ones who raise men, and the masters of heaven. (6)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 87
अधा॒ ही॑न्द्र गिर्वण॒ उप॑ त्वा॒ कामा॑न्म॒हः स॑सृ॒ज्महे॑ । उ॒देव॒ यन्त॑ उ॒दभिः॑ ॥ (७)
हे स्तुति-योग्य इंद्र! जिस प्रकार जलक्रीड़ा करते हुए लोग दूसरों पर जल उछालते हैं, उसी प्रकार हम महान्‌ एवं चाहने योग्य स्तोत्र तुम्हारी ओर भेजते हैं. (७)
O you praise-worthy Indra! Just as people throw water at others while doing water sports, so we send great and desirable hymns to you. (7)

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 87
वार्ण त्वा॑ य॒व्याभि॒र्वर्ध॑न्ति शूर॒ ब्रह्मा॑णि । वा॒वृ॒ध्वांसं॑ चिदद्रिवो दि॒वेदि॑वे ॥ (८)
हे शूर एवं वज्रधारी इंद्र! जिस प्रकार नदियां जल से सागर को बढ़ाती हैं, उसी प्रकार स्तोता तुम्हें बढ़ाते हैं. तुम स्तोत्रों द्वारा बढ़ने वाले हो. (८)
O Shur and Vajradhari Indra! Just as rivers raise the ocean with water, so do the hymns increase you. You're going to grow by hymns. (8)
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