हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 8.91.22

मंडल 8 → सूक्त 91 → श्लोक 22 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 91
अ॒ग्निमिन्धा॑नो॒ मन॑सा॒ धियं॑ सचेत॒ मर्त्यः॑ । अ॒ग्निमी॑धे वि॒वस्व॑भिः ॥ (२२)
मनुष्य लकड़ियों की सहायता से अग्नि को प्रज्वलित करता हुआ मन की श्रद्धा के साथ यज्ञकर्म करता है. वह ऋत्विजों द्वारा अग्नि को बढ़ाता है. (२२)
Man performs yajnakarma with the reverence of the mind, igniting the agni with the help of wood. He increases the agni by the ritwijas. (22)