हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 9.58.2

मंडल 9 → सूक्त 58 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 58
उ॒स्रा वे॑द॒ वसू॑नां॒ मर्त॑स्य दे॒व्यव॑सः । तर॒त्स म॒न्दी धा॑वति ॥ (२)
इस सोम की धन देने वाली व दीप्तियुक्त धारा यजमान की रक्षा करना जानती है. स्तोताओं को पाप से बचाने वाले एवं देवमदकारी सोम गति करते हैं. (२)
The money-giving and glistening stream of this mon knows how to protect the host. Those who save the Psalms from sin and the Devmadkari Som do the motion. (2)