ऋग्वेद (मंडल 9)
पव॑मान॒ रस॒स्तव॒ दक्षो॒ वि रा॑जति द्यु॒मान् । ज्योति॒र्विश्वं॒ स्व॑र्दृ॒शे ॥ (१८)
हे शुद्ध होते हुए सोम! तुम्हारा बढ़ा हुआ एवं दीप्तिशाली रस विशेषरूप से सुशोभित होता है तथा अपने तेज से विश्व को व्याप्त करके देखने योग्य बनाता है. (१८)
O you are pure, Mon! Your grown and radiant juice is especially beautified and makes the world visible by pervading it with its brightness. (18)