ऋग्वेद (मंडल 9)
त्वे॒षं रू॒पं कृ॑णुते॒ वर्णो॑ अस्य॒ स यत्राश॑य॒त्समृ॑ता॒ सेध॑ति स्रि॒धः । अ॒प्सा या॑ति स्व॒धया॒ दैव्यं॒ जनं॒ सं सु॑ष्टु॒ती नस॑ते॒ सं गोअ॑ग्रया ॥ (८)
सोम की शन्रुनिवारक किरण अपने रूप को दीप्तिशाली करती है. वह युद्ध में सोती है, शत्रुओं को रोकती है, जल देती हुई हव्य अन्न के साथ देवभक्त मनुष्य के पास आती है एवं शोभनस्तुतियों से मिलती है. सोम उन वाक्यों से मिलते हैं, जिनके द्वारा स्तोता गायों को पाने की प्रार्थना करता है. (८)
The shanrunivarak kiran of Som brightens up its form. She sleeps in battle, stops the enemies, comes to the god-godly man with the food that is giving water and meets the shobhanstutis. Som meets the sentences by which the stota prays to get the cows. (8)