ऋग्वेद (मंडल 9)
असा॑वि॒ सोमो॑ अरु॒षो वृषा॒ हरी॒ राजे॑व द॒स्मो अ॒भि गा अ॑चिक्रदत् । पु॒ना॒नो वारं॒ पर्ये॑त्य॒व्ययं॑ श्ये॒नो न योनिं॑ घृ॒तव॑न्तमा॒सद॑म् ॥ (१)
दीप्तिशाली, वर्षा करने वाले एवं हरितवर्ण सोम निचोड़े गए. राजा के समान दर्शनीय सोम जल को लक्ष्य करके शब्द करते हैं. सोम शुद्ध होकर भेड़ के बालों से बने दशापवित्र की ओर ऐसे जाते हैं. जैसे बाज अपने घोंसले की ओर जाता है. सोम अपने जलपूर्ण स्थान की ओर निचुड़ते हैं. (१)
The bright, rainy and greenish-coloured somas were squeezed. The king's like-sighted mons make the word by aiming at the water. Som goes purely towards dashapavitra made of sheep's hair. Like the hawk leads to its nest. Mon walks towards his watery place. (1)
ऋग्वेद (मंडल 9)
क॒विर्वे॑ध॒स्या पर्ये॑षि॒ माहि॑न॒मत्यो॒ न मृ॒ष्टो अ॒भि वाज॑मर्षसि । अ॒प॒सेध॑न्दुरि॒ता सो॑म मृळय घृ॒तं वसा॑नः॒ परि॑ यासि नि॒र्णिज॑म् ॥ (२)
हे क्रांतदर्शी सोम! तुम यज्ञ करने की इच्छा से पूजनीय दशापवित्र की ओर जाते हो एवं जल से धुलकर युद्ध में जाने वाले घोड़े के समान चलते हो. हे सोम! तुम जल में मिलकर दशापवित्र की ओर जाते हो. तुम हमारे सभी पापों को नष्ट करके हमें सुखी करो. (२)
O revolutionary Mon! You go to the revered Dashapavitra with the desire to perform the yajna and walk like a horse that goes to war by washing it with water. Hey Mon! You go to Dashapavitra together in the water. May you destroy all our sins and make us happy. (2)
ऋग्वेद (मंडल 9)
प॒र्जन्यः॑ पि॒ता म॑हि॒षस्य॑ प॒र्णिनो॒ नाभा॑ पृथि॒व्या गि॒रिषु॒ क्षयं॑ दधे । स्वसा॑र॒ आपो॑ अ॒भि गा उ॒तास॑र॒न्सं ग्राव॑भिर्नसते वी॒ते अ॑ध्व॒रे ॥ (३)
महान् एवं पत्तों वाले सोम के पिता मेघ हैं. वे सोम धरती की नाभि के समान पर्वतों के पत्थरों पर रहते हैं. उंगलियां गायों का दूध जल के पास ले जाती हैं. सोम शोभन यज्ञ में पत्थरों के साथ मिलते हैं. (३)
The father of the great and leafy Mon is Megh. They live on the stones of mountains like the navel of the Som earth. The fingers carry the milk of the cows to the water. Som Shobhan meets with stones in the yagna. (3)
ऋग्वेद (मंडल 9)
जा॒येव॒ पत्या॒वधि॒ शेव॑ मंहसे॒ पज्रा॑या गर्भ शृणु॒हि ब्रवी॑मि ते । अ॒न्तर्वाणी॑षु॒ प्र च॑रा॒ सु जी॒वसे॑ऽनि॒न्द्यो वृ॒जने॑ सोम जागृहि ॥ (४)
हे धरती के पुत्र सोम! मैं जो स्तुतियां बोलता हूं, उन्हें सुनो. पत्नी जैसे अपने पति को सुख देती है, उसी प्रकार तुम यजमान को सुख देते हो. तुम हमारे जीवन के लिए हमारी स्तुतियों के मध्य गतिशील बनो. हे स्तुति योग्य सोम! तुम हमारे शक्तिशाली शत्रुओं के प्रति सावधान रहना. (४)
O son of the earth, Mon! Listen to the praises I speak. Just as a wife gives happiness to her husband, so you give happiness to the host. You become dynamic among our praises for our lives. O praise worthy Mon! You beware of our powerful enemies. (4)
ऋग्वेद (मंडल 9)
यथा॒ पूर्वे॑भ्यः शत॒सा अमृ॑ध्रः सहस्र॒साः प॒र्यया॒ वाज॑मिन्दो । ए॒वा प॑वस्व सुवि॒ताय॒ नव्य॑से॒ तव॑ व्र॒तमन्वापः॑ सचन्ते ॥ (५)
हे सोम! तुमने जिस प्रकार पूर्ववर्ती महर्षियों को सैकड़ों एवं हजारों संपत्तियां दी थीं, उसी प्रकार इस समय हमारी नवीन उन्नति के लिए टपको. जल तुम्हारे कर्म के लिए तुमसे मिलते हैं. (५)
Hey Mon! Just as you gave hundreds and thousands of properties to the erstwhile Maharishis, so at this time, tapko for our new advancement. Water meet you for your karma. (5)