ऋग्वेद (मंडल 9)
अद॑ब्ध इन्दो पवसे म॒दिन्त॑म आ॒त्मेन्द्र॑स्य भवसि धा॒सिरु॑त्त॒मः । अ॒भि स्व॑रन्ति ब॒हवो॑ मनी॒षिणो॒ राजा॑नम॒स्य भुव॑नस्य निंसते ॥ (३)
हे अहिंसित एवं अत्यंत नशीले सोम! तुम शुद्ध होते हो. तुम स्वयं ही उत्तम होकर इंद्र के भक्ष्य बनते हो. बहुत से स्तोता इस संसार के राजा सोम की स्तुति करते हैं एवं उसके समीप जाते हैं. (३)
O non-violent and extremely intoxicating Mon! You are pure. You yourself become the eater of Indra by being the best. Many stotas praise the king of this world, Soma, and go near him. (3)