हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 9.85.4

मंडल 9 → सूक्त 85 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 85
स॒हस्र॑णीथः श॒तधा॑रो॒ अद्भु॑त॒ इन्द्रा॒येन्दुः॑ पवते॒ काम्यं॒ मधु॑ । जय॒न्क्षेत्र॑म॒भ्य॑र्षा॒ जय॑न्न॒प उ॒रुं नो॑ गा॒तुं कृ॑णु सोम मीढ्वः ॥ (४)
अनेक प्रकार की आंखों वाले, असीमित धाराओं से युक्त एवं अदभुत सोम इंद्र के लिए मनचाहा मधुर रस टपकाते हैं. हे सोम! तुम हमारे लिए खेत और जल को जीतकर दशापवित्र की ओर आओ एवं जल बरसाने वाले बनकर हमारा मार्ग चौड़ा करो. (४)
With a variety of eyes, unlimited streams and amazing som drips the sweet juices they want for Indra. Hey Mon! You must conquer the field and the water for us, and come to dashapavittra, and widen our way as the rainers. (4)