हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 9.85.7

मंडल 9 → सूक्त 85 → श्लोक 7 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 9)

ऋग्वेद: | सूक्त: 85
अत्यं॑ मृजन्ति क॒लशे॒ दश॒ क्षिपः॒ प्र विप्रा॑णां म॒तयो॒ वाच॑ ईरते । पव॑माना अ॒भ्य॑र्षन्ति सुष्टु॒तिमेन्द्रं॑ विशन्ति मदि॒रास॒ इन्द॑वः ॥ (७)
अध्वर्यु लोगों की दस उंगलियां घोड़े के समान गतिशील सोम को कलश में मसलती हैं. ब्राह्मणों के बीच बैठे स्तोता स्तुतियां बोलते हैं. शुद्ध होते हुए सोम जाते हैं. नशीले सोम इंद्र के उदर में प्रवेश करते हैं. (७)
The ten fingers of the Adhwaryu people straddle the horse-like moving som in the kalash. The stothas sitting among the Brahmins speak praises. Go to Mon while being pure. The intoxicating mon enters indra's abdomen. (7)