सामवेद (अध्याय 1)
अग्ने यजिष्ठो अध्वरे देवां देवयते यज । होता मन्द्रो वि राजस्यति स्रिधः ॥ (४)
हे अग्नि! आप यज्ञ में पूजनीय हैं. यजमान के लिए देवताओं का यजन कीजिए. देवों को बुलाने वाले आप शत्रुओं को हरा कर शोभायमान होते हैं. (४)
O agni! You are revered in yajna. Host the gods for the host. Those who call the gods, you are adorned by defeating the enemies. (4)