सामवेद (अध्याय 1)
प्र सो अग्ने तवोतिभिः सुवीराभिस्तरति वाजकर्मभिः । यस्य त्वँ सख्यमाविथ ॥ (२)
हे अग्नि! आप जिन यजमानों के मित्र हो जाते हैं, वे अन्नबल की रक्षा करने वाली श्रेष्ठ संतान प्राप्त करते हैं. (२)
O agni! The hosts you become friends with get the best children who protect the grain. (2)