हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 1.12.4

अध्याय 1 → खंड 12 → मंत्र 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 1)

सामवेद: | खंड: 12
मा नो हृणीथा अतिथिं वसुरग्निः पुरुप्रशस्त एशः । यः सुहोता स्वध्वरः ॥ (४)
अग्नि यज्ञ में मेहमान की तरह हैं. उन्हें यज्ञ से दूर मत ले जाओ. वे देवताओं को बुलाने वाले हैं. वे सुखशांति देने वाले हैं. वे अनेक लोगों द्वारा पूजित व सब को बसाने वाले हैं. (४)
Agni is like a guest in the yagna. Don't take them away from the yagna. They are going to call the gods. They are comforters. He is worshipped by many people and settlers for all. (4)