सामवेद (अध्याय 10)
अग्निनाग्निः समिध्यते कविर्गृहपतिर्युवा । हव्यवाड्जुह्वास्यः ॥ (१)
हे अग्नि! आप कवि, विद्वान्, युवा, हविवाहक व यज्ञ के रक्षक हैं. आप को समिधा से प्रज्वलित किया जाता है. (१)
O agni! You are a poet, scholar, youth, husband and protector of yajna. You are ignited with samidha. (1)
सामवेद (अध्याय 10)
यस्त्वामग्ने हविष्पतिर्दूतं देव सपर्यति । तस्य स्म प्राविता भव ॥ (२)
हे अग्नि! आप हविपति तथा देवदूत हैं. आप की जो विधिवत रक्षा करते हैं, आप उन की रक्षा करने की कृपा कीजिए. (२)
O agni! You are a god and an angel. Please protect those who duly protect you. (2)
सामवेद (अध्याय 10)
यो अग्निं देववीतये हविष्माँ आविवासति । तस्मै पावक मृडय ॥ (३)
हे अग्नि! आप हविमान हैं. हम देवताओं को हवि पहुंचाने के लिए आप से अनुरोध करते हैं. आप पवित्र हैं. आप हमें सुखी बनाने की कृपा कीजिए. (३)
O agni! You are a human being. We request you to deliver havi to the gods. You are holy. Please make us happy. (3)
सामवेद (अध्याय 10)
मित्रँ हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम् । धियं घृताचीँ साधन्ता ॥ (४)
हे मित्र! आप पवित्र और दक्ष हैं. हे वरुण! आप जल उपजाते हैं. आप दोनों देव हमें बुद्धि प्रदान कीजिए. आप हमें साधिए एवं हमारे शत्रुओं का नाश कीजिए. हम आप दोनों देवों का आह्वान करते हैं. (४)
Hey friend! You are pure and efficient. O Varuna! You grow water. May you two gods give us wisdom. You save us and destroy our enemies. We call upon both of you gods. (4)
सामवेद (अध्याय 10)
ऋतेन मित्रावरुणावृतावृधावृतस्पृशा । क्रतुं बृहन्तमाशाथे ॥ (५)
हे मित्र! हे वरुण! आप सत्य के रक्षक हैं. आप यज्ञ को सफल बनाते हैं. आप हमें भी पुण्यशाली व सत्य का रक्षक बनाइए. (५)
Hey friend! O Varuna! You are the protector of truth. You make the yajna a success. You also make us virtuous and protectors of truth. (5)
सामवेद (अध्याय 10)
कवी नो मित्रावरुणा तुविजाता उरुक्षया । दक्षं दधाते अपसम् ॥ (६)
हे मित्र! हे वरुण! आप दक्ष, जलधारी, कवि व अनेक स्थानों पर वास करते हैं. आप हमें क्षमतावान बनाते हैं. (६)
Hey friend! O Varuna! You are skilled, water-clad, poet and live in many places. You make us capable. (6)
सामवेद (अध्याय 10)
इन्द्रेण सँ हि दृक्षसे सञ्जग्मानो अबिभ्युषा । मन्दू समानवर्च्चसा ॥ (७)
हे मरुद्गण! आप समान वर्चस्व वाले सदैव प्रसन्न रहते हैं. आप तेजोमय, वीर व भयमुक्त हैं. आप इंद्र के साथ सुशोभित होते हैं. (७)
O Desertion! You are always happy with equal domination. You are bright, brave and fearless. You are adorned with Indra. (7)
सामवेद (अध्याय 10)
आदह स्वधामनु पुनर्गर्भत्वमेरिरे । दधाना नाम यज्ञियम् ॥ (८)
हे मरुद्गण! आप पूजनीय व नामधारी हैं. आप अपने धाम (नष्ट होने के बाद फिर से उत्पन्न होने वाले अन्न और जल) में गर्भ धारण कर के आकार प्राप्त करते हैं. आप यज्ञ को धारण करते हैं. (८)
O Desertion! You are revered and named. You attain the shape of by conceiving in your dham (food and water that is produced again after being destroyed). You wear yajna. (8)