सामवेद (अध्याय 13)
ज्योतिर्यज्ञस्य पवते मधु प्रियं पिता देवानां जनिता विभूवसुः । दधाति रत्नँ स्वधयोरपीच्यं मदिन्तमो मत्सर इन्द्रियो रसः ॥ (१)
हे सोम! आप पवित्र, मधुर, देवताओं को प्रिय, पालक एवं धन प्रदान करने वाले हैं. आप स्फूर्तिदायी हैं. आप इंद्र को मदमस्त बना देते हैं. आप यह की ज्योति हैं. आप यजमान के लिए रत्न धारण करते हैं. (१)
O Mon! You are pure, sweet, dear to the gods, foster and rich. You are energetic. You make Indra mad. You are the light of it. You wear gemstones for the host. (1)