सामवेद (अध्याय 15)
सोमः पुनानो अर्षति सहस्रधारो अत्यविः । वायोरिन्द्रस्य निष्कृतम् ॥ (१)
वायु और इंद्र के लिए सोमरस निचोड़ा गया है. सोमरस पवित्र व सहस्र धारा वाला है. भेड़ के बालों की छलनी से छान कर उसे तैयार किया गया है. (१)
Somerus has been squeezed for Vayu and Indra. Someras is holy and has a thousand streams. The sheep's hair has been filtered with a sieve and prepared. (1)
सामवेद (अध्याय 15)
पवमानमवस्यवो विप्रमभि प्र गायत । सुष्वाणं देववीतये ॥ (२)
हे ब्राह्मणो! सोम आप को पवित्र करने वाले हैं. आप देवताओं से अपने संरक्षण की कामना कीजिए. आप इन के लिए स्तुतियां गाइए. (२)
O Brahmins! Som is going to sanctify you. Wish the gods your protection. Sing praises for them. (2)
सामवेद (अध्याय 15)
पवन्ते वाजसातये सोमाः सहस्रपाजसः । गृणाना देववीतये ॥ (३)
हे सोम! आप अन्न प्रदान करने के लिए अपनी सहस्र धाराओं से झरिए. देवताओं को भेंट करने के लिए आप को परिष्कृत किया जाता है. (३)
O Mon! You jump with your thousand streams to provide food. You are refined to offer to the gods. (3)
सामवेद (अध्याय 15)
उत नो वाजसातये पवस्व बृहतीरिषः । द्युमदिन्दो सुवीर्यम् ॥ (४)
हे सोम! आप पवित्र व विशाल हैं. आप हमें श्रेष्ठ वीर्यवान बनाने की कृपा कीजिए. (४)
O Mon! You are pure and vast. Please make us the best semen. (4)
सामवेद (अध्याय 15)
अत्या हियाना न हेतृभिरसृग्रं वाजसातये । वि वारमव्यमाशवः ॥ (५)
हे सोम! आप अग्रगण्य हैं. यजमान आप को अन्न प्राप्ति के लिए गतिपूर्वक परिष्कृत करते हैं. (५)
O Mon! You are the forward. Hosts refine you dynamically to get food. (5)
सामवेद (अध्याय 15)
ते नः सहस्रिणँ रयिं पवन्तामा सुवीर्यम् । सुवाना देवास इन्दवः ॥ (६)
हे सोम! आप सहस्र धार वाले, पवित्र और धनवान हैं. हमें देवत्व प्रदान करें. (६)
O Mon! You are thousands of sharp, holy and wealthy. Give us divinity. (6)
सामवेद (अध्याय 15)
वाश्रा अर्षन्तीन्दवोऽभि वत्सं न मातरः । दधन्विरे गभस्त्योः ॥ (७)
हे सोम! आप वैसे ही आवाज करते हुए कलश में जाते हैं, हाथों में लिए जाते हैं जैसे मां प्रेम वचन बोलती हुई अपने बच्चों की ओर जाती है और बच्चों को हाथ में ले लेती है. (७)
O Mon! You go to the kalash making the same sound, are taken in your hands just as the mother goes towards her children speaking love words and takes the children in her hand. (7)
सामवेद (अध्याय 15)
जुष्ट इन्द्राय मत्सरः पवमान कनिक्रदत् । विश्वा अप द्विषो जहि ॥ (८)
हे सोम! आप इंद्र को तृप्ति देते हैं. आप पवित्र हैं. आप क्रंदन (आवाज) करते हुए सभी शत्रुओं का विनाश करने की कृपा कीजिए. (८)
O Mon! You give satiation to Indra. You are holy. Please destroy all enemies by shouting. (8)