सामवेद (अध्याय 15)
पवन्ते वाजसातये सोमाः सहस्रपाजसः । गृणाना देववीतये ॥ (३)
हे सोम! आप अन्न प्रदान करने के लिए अपनी सहस्र धाराओं से झरिए. देवताओं को भेंट करने के लिए आप को परिष्कृत किया जाता है. (३)
O Mon! You jump with your thousand streams to provide food. You are refined to offer to the gods. (3)