सामवेद (अध्याय 17)
आ जागृविर्विप्र ऋतां मतीनाँ सोमः पुनानो असदच्चमूषु । सपन्ति यं मिथुनासो निकामा अध्वर्यवो रथिरासः सुहस्ताः ॥ (१)
सोम जाग्रत हैं, स्तुतियों को जानने वाले हैं. वे छनछन कर द्रोणकलश में झरते हैं. धनवान अच्छे हाथों वाले संपत्ति पाने के इच्छुक पुरोहित इसे इकट्ठा कर के संभाल कर रखते हैं. (१)
Soma is awake, he is the one who knows the praises. They filter and fall into dronakalsh. Priests who want to get wealth with rich good hands collect and keep it. (1)