सामवेद (अध्याय 17)
मा चिदन्यद्वि शँसत सखायो मा रिषण्यत । इन्द्रमित्स्तोता वृषणँ सचा सुते मुहुरुक्था च शँसत ॥ (४)
हे मित्र यजमानो! इंद्र बलवान हैं. आप सोमरस परिष्कृत कर के इंद्र की ही स्तुति कीजिए, किसी दूसरे देवता की नहीं. आप बारबार और देवताओं की स्तुति में समय और क्षमता नष्ट मत कीजिए. आप सामूहिक रूप से इंद्र की उपासना कीजिए. (४)
O friend, sir! Indra is strong. You refine someras and praise Indra, not any other god. Don't waste time and ability again and again in praise of the gods. You worship Indra collectively. (4)