हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 17.3.2

अध्याय 17 → खंड 3 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 17)

सामवेद: | खंड: 3
उपो मतिः पृच्यते सिच्यते मधु मन्द्राजनी चोदते अन्तरासनि । पवमानः सन्तनिः सुन्वतामिव मधुमान्द्रप्सः परि वारमर्षति ॥ (२)
सोम मधुर व बुद्धिवर्दधक हैं. सोमरस इंद्र को प्रेरित करने वाला है. यजमान सोमरस निचोड़ते व उसे जल में मिलाते हैं, उस को और परिष्कृत करते हैं. (२)
Som is sweet and intelligent. Someras is going to inspire Indra. The host squeezes someras and mixes it in water, refining it further. (2)