हरि ॐ

सामवेद (Samved)

सामवेद 18.1.2

अध्याय 18 → खंड 1 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

सामवेद (अध्याय 18)

सामवेद: | खंड: 1
यः स्नीहितीषु पूर्व्यः सञ्जग्मानासु कृष्टिषु । अरक्षद्दाशुषे गयम् ॥ (२)
अग्नि हमेशा प्रकाशित रहते हैं. यजमान जब प्रेम भाव से मिल कर रहते हैं तो वे उन के वैभव की रक्षा करते हैं. (२)
Agni is always illuminated. When the hosts live together with love, they protect their splendor. (2)